रायगढ़ में आज भी कंपनी-तंत्र! शोषण से मुक्ति के लिए तीन दिनों से कंपनी के गेट पर बैठे कामगार.. कलेक्टर को भी बताया, SECL ने कागज में बेवकूफ बनाया..

रायगढ़। रायगढ़ जिले के घरघोड़ा क्षेत्र के अंतर्गत एसईसीएल की बरोद-बिजारी सबडिवीजन में कोयले की खदान है। यहां से एसईसीएल कोयले का खनन करता है। इसकी मेन गेट पर पिछले 3 दिनों से खदान में काम करने वाले ट्रक और लॉरी ड्राइवर धरने पर बैठे हैं। इन 10 दिनों में रायगढ़ के मौसम में भारी बदलाव देखने को मिला है। दोपहर में चिलचिलाती गर्मी और रात को तेज हवाओं के साथ बारिश भी हो रही है मगर उसके बावजूद भी इनके इरादे मजबूत है और अपने हक के लिए यह धरने पर बैठे हुए हैं। क्योंकि माइंस में नौकरी के नाम पर इनका जिस तरह शोषण होता है, उसके आगे यह सर्दी-गर्मी-बरसात कुछ भी नहीं!

काम के नाम पर शोषण ! 8 के बजाय 12 घंटे लिया जाता काम
धरने पर बैठे लोगों से जब हमने इस संबंध में जानकारी मांगी तो उन्होंने बताया कि वे एसईसीएल के बरोद-बिजारी खदान में ठेके में दी गई कंपनियों में ड्राइवरी का काम करते हैं। सभी स्थानीय निवासी हैं। काम के नाम पर उनका भरपूर शोषण किया जाता है। माइंस के धूल धक्कड़ के बीच उन से 8 घंटे की बजाय 12 घंटे तक काम लिया जाता है, जबकि सरकारी नियम सिर्फ 8 घंटे काम करवाने का है। हफ्ते में कोई छुट्टी भी नहीं दी जाती। यह सभी एसईसीएल के माइंस प्रभावित गांव के हैं। नौकरी के नाम पर इन्हें ठेका कंपनियों में भर्ती कर दिया गया है। इतना ही नहीं 12 घंटे काम करने के बाद भी इनको मजदूरी भी HPC दर पर नहीं दी जाती। अपनी इन शोषण की बातों को उन्होंने एसईसीएल प्रबंधन के साथ-साथ रायगढ़ जिला कलेक्टर को भी ज्ञापन के माध्यम से अवगत कराया है।

मांगे तो मानी, मगर सिर्फ कागज में
उन्होंने बताया कि अपने साथ हो रहे इस शोषण की जानकारी जिला कलेक्टर को दो बार दी है। 6 मार्च को उनके साथ हो रहे शोषण को लेकर उन्होंने कंपनी प्रबंधन को पत्र भी लिखा था। कोई कार्यवाही ना होते हुए देख आखिरकार 14 मार्च को उन्होंने इसके लिए आर्थिक नाकेबंदी कर एकजुट होकर आवाज उठाई थी। इसमें उनकी सिर्फ तीन मांगे थी। पहली मांग यह थी कि कंपनी के नियम के तहत उन्हें 8 घंटे की पालीयों में ड्यूटी कराया जाए। दूसरी उन्हें एचपीसी दर पर तनख्वाह दी जाए और उनकी तीसरी शर्त यह थी कि आसपास के प्रभावित क्षेत्रों के शिक्षित बेरोजगारों को ट्रक ड्राइवर बनाने के बजाय उनकी योग्यता अनुसार 75% भर्ती प्रभावित गांव के लोगों की की जाए। एसईसीएल कंपनी प्रबंधन ने उनकी बात मानी और उन्होंने लिखित में आदेश भी ठेका कंपनियों को जारी किया था। मगर कंपनी के लिखित आदेश की परवाह न करते हुए उन ठेका कंपनियों ने अपने हाथ खड़े कर दिए और आज भी उनका 12 घंटे शोषण हो रहा है और तनख्वाह के नाम पर आधी अधूरी सैलरी दी गई। इतना ही नहीं उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी भी मिली।

उन्होंने यह भी बताया कि एसईसीएल ने लिखित आदेश ठेका कंपनियों को तो दिया मगर… सिर्फ कागजों में! इस आदेश का पालन करवाने में कंपनी की कोई दिलचस्पी नही दिखाई! किसी प्रकार का कोई दबाव आदेश के पालन के लिए भी नहीं बनाया गया। कुल मिलाकर इन सभी ड्राइवरों को कागज के नाम पर मूर्ख बना दिया गया।

रायगढ़ में आज भी कंपनी तंत्र हावी…
अपनी जायज मांगों को लेकर वे दोबारा एसईसीएल की गेट पर बैठे हुए हैं। आज 3 दिन हो गए मगर एसईसीएल का कोई भी बड़ा अधिकारी या फिर प्रशासनिक अमला हरकत में नहीं आया। अगर किसी प्राइवेट संस्थान में वहां में काम करने वाले श्रमिकों के साथ ऐसा होता तो एक बार के लिए बात समझ में आती है मगर यहां तो एक भारत सरकार के नवरत्न कंपनी का यह हाल है! तो आप अंदाजा लगा सकते हैं छत्तीसगढ़ के औद्योगिक जिले रायगढ़ में शासन प्रशासन कितना गंभीर है..?? यहां आंखों देखा शोषण किसी को दिखाई नहीं देता! हाँ, मगर प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से रामराज्य जरूर दिखाने की कोशिश की जाती है..! अगर अपने मौलिक अधिकारों और जायज मांग को लेकर भी आजाद हिंदुस्तान में आंदोलन करना पड़े.. यकीनन कहा जा सकता है कि आजादी के 7 दशक बाद भी लोकतंत्र पर कंपनी-तंत्र हावी है!