रायगढ़ में कोर्ट से बड़ी है कोतवाली? न्यायालय में हथकड़ी पहने आंसू बहाता एक आदिवासी! रायगढ़ में पैसे के आगे दम तोड़ता न्याय.. देखिए एक करोड़पति और एक आदिवासी की झकझोर कर देने वाली कहानी.. अदालतो के फैसलों के साथ

रायगढ़ : कल रविवार को रायगढ़ कोर्ट परिसर में आज एक युवक दिखाई दिया। जिसके हाथों में हथकड़ी थी और आंखों में आंसू! दिखने में दुबला पतला सीधा-साधा एक गरीब सा प्राणी! जब पता किया तो पता चला कि वह गरीब आदिवासी है। उसका नाम मकसिरो भुइहर है। उस पर जालसाजी और फर्जी दस्तावेज बनाने के लेकर अपराध दर्ज कर कोर्ट लाया गया है। उसने जिले के मशहूर जमीन के एक्सपर्ट अरबपति अजित मेहता और उनके पुत्र अर्पित मेहता के खिलाफ ठगी और जालसाजी की है। बात चौंकाने वाली थी! जब मामले की पूरी पड़ताल की गई और जो कुछ सामने आया वह वाकई रायगढ़ की वर्तमान परिस्थितियों पर बने में एक जन कहावत को को साबित करता है कि “कोर्ट से बड़ी कोतवाली!“

पुलिस का एंगल
इस मामले में पुलिस के के द्वारा मीडिया को दी गई जानकारी अनुसार उन्होंने इस मामले में थाना कोतवाली में स्टेशन चौक निवासी अजीत मेहता की शिकायत पर आरोपी संजय सिंह, मकसीरो, राधा उर्फ देवमती एवं उरकुली के विरूद्ध अपराध क्रमांक 1773/2022 धारा 420, 467, 468, 471, 120 (बी), 34 भादवि का अपराध दर्ज किया है। उन पर आरोप है कि ऋण पुस्तिका की द्वितीय प्रति प्राप्त करने के लिए एवं लीज पर दी गई बेशकीमती जमीन हड़पने तहसील न्यायालय में झूठा हलफनामा दिए लीज पर दी गई बेशकीमती जमीन हड़पने का झूठा हलफनामा पेश किए थे।
इस पूरे मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि जो आरोप अजीत मेहता ने उन पर लगाया है, उसी आरोप को लेकर तहसील न्यायालय में और उसके बाद एसडीएम न्यायालय द्वारा फैसला दिया जा चुका है। उन फैसलों में थाना कोतवाली को निर्देशित भी किया गया है कि अजीत मेहता के पास रखी हुई आदिवासी की ऋण पुस्तिका को जब्त कर न्यायालय में जमा किया जाए। साथ ही एक फैसले में तहसील और एसडीएम न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि एक आदिवासी की जमीन कोई गैर आदिवासी जिला जिला कलेक्टर के अनुमति के नहीं ले सकता। न्यायालय ने उनकी पिता की जमीन पर उनके वारिसानो का नाम ट्रांसफर करने का आदेश जारी किया था और उनके हक में पट्टा जारी करने का भी। मगर कोतवाली पुलिस ने न्यायालय के आदेश को ना मानते हुए अजीत मेहता के उन्ही आरोपों पर आदिवासी भाई-बहन के खिलाफ गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल का रास्ता दिखा दिया है।

दरअसल ढिमरापुर चौक के पास सड़क किनारे एक बेशकीमती जमीन है जिसकी कीमत करोड़ों में होगी वह जमीन एक आदिवासी पिलाराम के नाम है। उसकी मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र मकसिरो पुत्री राधा और उरकुली जमीन में अपना नाम ट्रांसफर कराने के लिए तहसीलदार से अपील की। जिस पर उस जमीन पर ब्रेड फैक्ट्री चला रहे अर्पित अजीत मेहता के द्वारा आपत्ति दर्ज कराई गई। तहसील न्यायालय ने उनके आपत्ति को खारिज कर दिया और आदिवासी पिता की जमीन उनके वारिसों के नाम अंतरित का आदेश दिया।


ऋण पुस्तिका
आदिवासी भाई बहनों ने अपने पिता की जमीन ऋण पुस्तिका जिसे बोलचाल की भाषा में पट्टा कहा जाता है। उसके लिए तहसील न्यायालय में आवेदन दिया और बताया कि उनका पट्टा गुम हो गया है और न्यायालय द्वारा उनके नाम पर पट्टा जारी किया जाए। जिस पर अर्पित मेहता के द्वारा आपत्ति दर्ज की गई।
अर्पित मेहता ने कोर्ट को बताया कि वह पट्टा उनके (अर्पित) पास है और मकसिरो ने द्वारा गलत जानकारी प्रस्तुत कर दूसरा पट्टा हासिल करना चाह रहा है। अर्पित ने बताया कि मकसिरो के पिता स्वर्गीय पीलाराम ने यह जमीन 30 साल के लिए उन्हें लीज पर दी है। उक्त खसरों की भूमि का कब्जा तथा देखरेख, संव्यवहार व कर अदायगी संबंधी सारे अधिकार पंजीकृत लीज डीड द्वारा मुझे (अर्पित) प्राप्त है, इसका इंद्राज किसाब किताब से भी है। मकसिरो को यह जानकारी होने के पश्चात भी किसान किताब गुम जाने का झूठा आधार लेकर न्यायालय के समक्ष झूठा शपथ पत्र प्रस्तुत कर उक्त आवेदन प्रस्तुत किया गया है, जो अवैधानिक है एवं अपराध की में आता है।
कुल मिलाकर वह सारी बातें जिस पर कोतवाली थाने ने एफ आई आर दर्ज किया है। वह सारी बातें उन्होंने तहसील न्यायालय से कही है तहसील वाले ने इस पर दोनों पक्षों को सुना। और फिर अपना आदेश जारी किया। जो नीचे आदेश की कॉपी में पढ़ा जा सकता है। न्यायालय ने अपना फैसला दिया कि
इस प्रकार बिना विधिवत स्वामित्व अर्जन के गैर आदिवासी द्वारा आदिवासी के स्वामित्व की भूमि की ऋण पुस्तिका को कब्जे में रखा जाना अनुचित प्रतीत होता है तथा गैर आदिवासी व्यक्ति के उक्त कृत्य से आदिवासी आवेदक को उनके विधि सस्मत अधिकार से वंचित किया गया है। फलस्वरूप वादभूमि के संबंध में पूर्व में स्व. पीलाराम के नाम जारी किसान किताब कमांक पी-2441155 को निरस्त किया जाकर स्व. पीलाराम के समस्त विधिक वारिशानों के पक्ष में द्वितीय प्रति किसान किताब जारी किया जाना उचित प्रतीत होता है।
अतः ग्राम जगतपुर तहसील व जिला रायगढ़ (छ.ग.) में आवेदक मकसीरो पिता स्व. पीनाराम वगैरह के नाम पर स्थित भूमि खसरा नंबर 5/2, 12/3ख रकबा 0. 344 है.. ख.नं. 5/3 रकबा 1.0960 हे., ख.नं. 8 रकबा 0.057 है की द्वितीय प्रति किसान किताब आवेदक को प्रदाय किया जाकर स्व, पीलाराम के नाम पर पूर्व में जारी किसान किताब क्रमांक पी-2441155 निरस्त किये जाने का आदेश पारित किया जाता है।
आदेशानुसार हल्का पटवारी को आवेदित भूमि की द्वितीय प्रति किसान किताब आवेदक को प्रदाय करने एवं पूर्व में स्व. पीलाराम को जारी किसान किताब क्रमांक पी-2441155 को आपत्तिकर्ता से जप्त कर निरस्त किये जाने हेतु न्यायालय में प्रस्तुत करने हेतु संबंधित थाना प्रभारी को ज्ञापन जारी हो, पालन प्रतिवेदन पश्चात प्रकरण नस्तीबद्ध कर दाखिल दफ्तर हो

एसडीएम कोर्ट खरसिया का फैसला
इसके बाद अर्पित मेहता द्वारा तहसील न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ एसडीएम कोर्ट खरसिया में अपील की गई एसडीएम कोर्ट ने भी दोनों पक्षों को सुनने के बाद तहसील न्यायालय के आदेश को सही पाया। अपने आदेश में उन्होंने बताया कि
उत्तरवादी आदिवासी वर्ग का व्यक्ति है तथा अपीलार्थी गैर आदिवासी वर्ग का व्यक्ति है। बिना कलेक्टर की अनुमति के विवादग्रस्त भूमि को अर्जित करने का कोई संवैधानिक अधिकारी नहीं है। अपीलार्थी द्वारा बिना किसी स्वामित्य अर्जन के आदिवासी के स्वामित्व की भूमि की ऋण पुस्तिका को कब्जे में रखा गया जिससे आदिवासी उत्तरवादी को उसके अधिकारो से वंचित होना पड़ा, इसलिये अधीनस्थ न्यायालय द्वारा वादग्रस्त भूमि का पूर्व में जारी ऋण पुस्तिका को निरस्त कर उत्तरवादीगण को द्वितीय प्रति ऋण पुस्तिका जारी किया गया। अतः अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित उपरोक्त आदेश दिनांक 08/06/2022 में किसी प्रकार के हस्तक्षेप करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होने से अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत अपील निराधर होने से निरस्त किया जाता है। पारित आदेश की एक प्रति मय अघनीस्थ न्यायालय को मूल प्रकरण उनकी और प्रेषित किया जावे। ततपश्चात प्रकरण नस्तीबद्ध होकर अभिलेख कोष्ठ में जमा हो

वसीयत के नाम पर आदिवासी जमीन अपने नाम करने का खेला
प्रावधानों के अनुसार एक आदिवासी की जमीन एक आदिवासी ही ले सकता है लेकिन अगर कोई गैर आदिवासी किसी आदिवासी की जमीन लेना चाहे तो उसके लिए जिला कलेक्टर की अनुमति आवश्यक है। मगर इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अजीत मेहता के द्वारा कोर्ट में बताया गया कि स्वर्गीय पीला राम के द्वारा दो गवाहों के समक्ष नोटरी कर जमीन की वसीयत उनके नाम पर की गई है। इसलिए जमीन का पट्टा उन्हें देना चाहिए। जिस पर तहसील न्यायालय ने जो फैसला दिया और उस फैसले को एसडीएम न्यायालय ने भी विधि सम्मत मानते हुए यथावत रखा। तहसील न्यायालय ने इस वसीयत को अवैध बताया इस पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि
प्रकरण के अवलोकन से पाया कि ग्राम जगतपुर तहसील व जिला रायगढ़ में स्थित भूमि खसरा नंबर 512 12:30, 5/3 व 8 क्या गुल 1.497 हे. के संबंध मे पूर्व इस न्यायालय द्वारा राजस्व प्रकरण कमांक [2022030401.00048/31-6/2021-22 पक्षकार राधा आ.स्व. पीलाराम वगैरह शासन में विधिवत सुनवाई करते हुये आदेश पारित किया जा चुका है तथा ‘पुनः इस न्यायालय द्वारा आदेश पारित किया जाना संभव नहीं है तथा प्रकरण आवेदक द्वारा प्रस्तुत वसीयतनामा (नोटरीकृत) है तथा आदिवासी मियामी से गैर आदिवासी को वसीयत किया गया है।
माननीय राजस्व न्यायालय छत्तीसगढ़ बिलासपुर के न्यायदृष्टांत (अनुया या अन्य वि. बुधवरिया तथा एक अन्य 1995 रा.नि. 389) में “वसीयत भी सम्पत्ति का अंतरण है, इसलिये आदिवासी के द्वारा गैर आदिवासी के पक्ष में कलेक्टर की अनुमति के बिना कृषि भूमि का वसीयतनामा अवैध है, वसीयतघारी को हक प्राप्त नहीं होता है” लेख है।
तहसील कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ एसडीएम कोर्ट में अपील फाइल की गई जिसको एसडीएम कोर्ट के द्वारा खारिज करते हुए स्पष्ट किया गया कि
वादग्रस्त भूमि के वसीयतकर्ता पीलाराम गिता वृन्दावन भुईहर जाति के सदस्य थे तथा भुइँहर जाति आदिवासी जनजाति के अंतर्गत शामिल है तथा आवेदक गैर आदिवासी व्यक्ति / सामान्य जाति के अंतर्गत आते है। आदिवासी जनजाति के सदस्य द्वारा अपनी भूमि का अंतरण अथवा हस्तांतरण किसी गैर आदिवासी व्यक्ति को श्रीमान कलेक्टर महोदय से विधिवत अनुमति लेने उपरांत ही किया जाता है। चूंकि अपीलार्थी द्वारा अथवा वसीयतकर्ता द्वारा उपरोक्त वसीयतनामा के निष्पादन को पूर्व श्रीमान कलेक्टर महोदय से किसी प्रकार की अनुमति ली गई अथवा नही इसके संबंध में प्रकरण में किसी प्रकार का कोई दस्तावेज संलग्न नही किया गया है, जिससे उपरोक्त निष्पादित अपंजीकृत वसीयतनामा दिनांक 29/03/2019 के संबंध में अपीलार्थी को किसी प्रकार का अनुतोष प्रदान किया जाना संभव नहीं है। इसलिये अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 06/04/2022 में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नही होने अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत अपील सारहीन होने से निरस्त किया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है।
अतः अपीलार्थी अजीत मेहता पिता स्व. पी. एल. मेहता द्वारा प्रस्तुत अपील अंतर्गत धारा 44 (1) छ.ग. भू-राजस्व संहिता 1959 सारहीन होने से निरस्त किया जाता है। प्रकरण नस्तीबद्ध होकर अभिलेख कोष्ठ में जमा हों।



अनुसूचित जाति जनजाति आयोग का रायगढ़ कलेक्टर रानू साहू को लिखा पत्र
मामला सिर्फ राजस्व न्यायालय तक ही सीमित नहीं था पीड़ित ने अपनी जमीन वापसी के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग तक गुहार लगाई थी जिस पर संज्ञान लेते हुए अनुसूचित जाति जनजाति ने इस पर जांच करने का फैसला लिया था और जिला कलेक्टर रामू साहू को इस मामले में जांच कर कार्यवाही के लिए निर्देशित किया था।

अब सवाल यह उठता है कि जब एक आदिवासी अपनी जमीन के लिए हर संभव कानूनी लड़ाई लड़ता है और कानून द्वारा उसे मिले अधिकार के तहत उसके साथ न्याय भी होता है। मगर उसको उसकी जमीन वापस मिलने के बजाय उसके ऊपर उसी मामले में धोखाधड़ी और जालसाजी जैसे गंभीर आरोप लगाकर अपराध दर्ज किया जाता है। उसे जेल जाना पड़ता है। कोर्ट द्वारा कोतवाली को पहले ही आदेश जारी किया जा चुका है ऐसे में उसी मामले में कोर्ट के विरुद्ध जाकर कोतवाली पुलिस अपराध दर्ज कर सकती है?? लगता है आज कोर्ट से बड़ी कोतवाली हो गई है इन परिस्थितियों को देखकर तो यही सत्य लगता है। जो आज इस आदिवासी के साथ हुआ है वह किसी के भी साथ हो सकता है हमारे आपके साथ भी। इस पूरे मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार मिश्रा ने मीडिया से स्पष्ट कहा कि रायगढ़ में अब कानून नहीं पैसे चलता है! इसके बाद उन्होंने जो कहा वह वाकई झकझोर देने वाला है। जिसे आप वीडियो में देख सकते हैं