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रायगढ़ विधानसभा में भाजपा से ओपी चौधरी तय! औपचारिक घोषणा ही बची.. कई खेमो में पसरा अजीब सा सन्नाटा!

रायगढ़। जिले की रायगढ़ विधानसभा सीट से प्रत्याशी का ऐलान आने वाले चंद दिनों में भाजपा करने वाली है। उम्मीद है कि सितंबर के पहले 5 दिनों में ही भाजपा यह लिस्ट कभी भी जारी कर सकती है। वैसे तो रायगढ़ से विधायक प्रत्याशी की दावेदारी को लेकर दो दर्जन भाजपा के उम्मीदवार थे मगर टॉप फाइव में सिर्फ पांच लोग की जगह बना पाए। वहीं दूसरी तरफ खबर है कि पार्टी के दिल्ली दरबार ने रायगढ़ विधानसभा सीट से कलेक्ट्री छोड़कर राजनीति में आए ओपी चौधरी को उम्मीदवार तय कर दिया है। इसकी बस औपचारिक घोषणा ही शेष है।

ओपी चौधरी ही क्यों..?

बताया जा रहा है कि भाजपा के लिए करीब 22 उम्मीदवारों ने विधायक के लिए अपनी दावेदारी पेश की थी। आखिरकार पांच नाम फाइनल हुई। जिसमें ओपी चौधरी, विजय अग्रवाल, उमेश अग्रवाल, गुरपाल भल्ला और गोपिका गुप्ता के नाम पर सहमति बनी थी। ओपी चौधरी भी लगातार अपनी टिकट के लिए प्रयासरत थे क्योंकि खरसिया विधानसभा से उनका लड़ने का मन नहीं था। उन्होंने रायगढ़ विधानसभा से लड़ने की अपनी इच्छा जताई थी। पिछले दो-तीन सालों से लगातार रायगढ़ विधानसभा में सक्रिय भी थे। ओपी चौधरी का कद और जातिगत समीकरण को देखते हुए पार्टी ने उनको ग्रीन सिग्नल दे दिया। ओपी चौधरी का नाम तय माना जा रहा है और इसकी अब अगले लिस्ट में औपचारिक घोषणा ही बची है। ओपी चौधरी भी अपनी तैयारी में जुड़ गए हैं। रायगढ़ के हर छोटे-बड़े नेताओं से उनका संपर्क शुरू हो गया है।

बाहरी प्रत्याशी का टैग

खरसिया विधानसभा सीट से ओपी चौधरी की जगह महेश साहू को उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद से ओपी चौधरी की रायगढ़ विधानसभा से दावेदारी मजबूत मानी जा रही थी। हालांकि उसके पार्टी के भीतर बाहरी प्रत्याशी होने का माहौल बनाया गया था। आपको बता दे ओपी चौधरी वैसे तो मूलभूत रूप से खरसिया विधानसभा से आते हैं। पिछली बार उन्होंने कलेक्ट्री छोड़कर यही से चुनाव लड़कर राजनीति की शुरुआत की थी। उस समय यह पूरे छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी हॉट सीट बन गई थी और यह अलग बात है कि वह कांग्रेस के गढ़ को ढहाने में नाकामयाब रहे, मगर इस हार के साथ ही उनका कद भी छत्तीसगढ़ में भाजपा की राजनीति में काफी ऊंचा हो गया था।

भाजपा में अजीब सी खामोशी

देखा जाए तो पिछले 4 सालों से ओपी चौधरी खरसिया से ज्यादा रायगढ़ की राजनीति में अधिक सक्रिय दिखाई दिए। उनके आने से भाजपा में अंदरुनी गुटबाजी भी ख़त्म होकर एक दिखी। भाजपा की कई आंदोलन में कई बड़े नेता एक साथ दिखाई दिए। ओपी चौधरी के नाम ‘फाइनल’ होने वाली बात भाजपा के कई खेमो में एक अजीब सन्नाटा सा छा गया है! ओपी के समर्थक खुश है लेकिन उससे कहीं ज्यादा भाजपा के पुराने धुरंधरो के खेमों में सिर्फ खामोशी है। क्योंकि चौधरी का भाजपा में करद इतना ऊंचा है कि बाकियों के पास संतोष करने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। बगावत और खिलाफत तो बहुत दूर की चीज है!

भंवरो ने खिलाया फूल फूल को ले गया..

वैसे रायगढ़ की राजनीति में देखा जाए तो भाजपा में परंपरागत तरीके से सिर्फ दो ही उम्मीदवार मैदान में उतरते थे। जिसमें एक दिवंगत जननायक रोशन लाल अग्रवाल और दूसरे विजय अग्रवाल! रायगढ़ विधानसभा की भाजपा की पूरी राजनीति इन्हीं दोनों की इर्द-गिर्द घूमती थी। 3 वर्ष पहले जननेता रोशनलाल अग्रवाल के निधन के बाद भाजपा में एक बड़ी जगह खाली हो गई थी। विजय अग्रवाल ने पार्टी को साइड कर उनके खिलाफ चुनाव लड़कर खुद के लिए मुसीबत खड़ी कर ली थी। ऐसे में भाजपा से विधायकी का सपना देखने वाले दूसरे और तीसरी पंक्ति के नेता भी अपनी किस्मत आजमाने में पिछले 4 साल से सक्रिय थे।

फिर अचानक से एक मेगास्टार की तरह आप चौधरी की एंट्री हुई। शुरू में यह कहा जा रहा था कि चौधरी खरसिया से ही दोबारा विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और रायगढ़ में पार्टी को मजबूत करने आए हैं। ऐसा समझने वाले कई बड़े -छोटे नेता उनके साथ जुड़ गए! मगर चौधरी जी ठहरे तो एक IAS.. सही-गलत, फायदे-नुकसान.. की समझ उनके पास कुछ ज्यादा होगी और इस बार उन्होंने अपनी राजनीतिक कुटिलता भी दिखाई.. और ऐंन मौके पर अपना पत्ता खोला। खरसिया विधानसभा को छोड़कर रायगढ़ में अपनी दावेदारी की.. और भाजपा से उम्मीदवार भी हो लिए..! एक अजीब से खामोशी पसरी है सभी दिग्गजो के खेमो में.. उनकी स्थिति ऐसी हो गई है जैसे बगीचे में किसी फूल के लिए कई भवरे सालों से मंडरा रहे हो और एक राजकुमार आता है और उसे फूल को ले जाता है!

फिलहाल ओपी चौधरी के मैदान में होने से रायगढ़ विधानसभा और भी ज्यादा रोचक हो गया है। इस वक्त बीजेपी के इन उदास खेमो में फिल्म “प्रेमरोग” का एक ही गाना सूट करता है..

“भंवरो ने खिलाया फूल फूल को ले गया राजकुँवर..”

फिलहाल ऊपर उसे गाने का यूट्यूब वीडियो है। आप भी सुनिए और इंजॉय कीजिए चौधरी जी के नाम की फाइनल घोषणा होने तक..

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