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विशेष लेख: हिंदी भाषा, सभ्यता और संस्कार

हिंदी भाषा हमारी मातृभाषा है जिसका की आजादी के बाद से ही अंग्रेजी भाषा ने जिस व्यापक रूप से अपने पैर पसारे और यह भाषा केवल पढ़ने या शिक्षा लेने तक ही सीमित नहीं रही बल्कि हमारे मस्तिष्क के अलावा हमारी सभ्यता संस्कार परिवेश में भी घुल मिल गई उसका हमें पता ही नहीं चला। आज जब परिवार छोटे होते जा रहे हैं तब हमें महसूस होता है कि हिंदी भाषा केवल भाषा नहीं अपुती हमारी सभ्यता और संस्कार की जननी है जिसका की हमारे बच्चों में जानना पढ़ना समझना और हिंदी के संस्कार होना बहुत जरूरी है।

४९ मतलब कितना होता है..??

आज आप खुद महसूस करिए आपके बच्चे को आप ४९ बोलेंगे तो वह पूछता है कि ४९ मतलब कितना होता है इंग्लिश में बोलिए,, तो क्या हमारी मातृभाषा हिंदी इतनी कमजोर हो गई है या हमारे स्कूलों में जो एक विषय हिंदी का पढ़ाया जा रहा है उसे भी हमारे शिक्षक हमारे बच्चों को यह नहीं समझा पा रहे हैं कि ४६, ६७ क्या होता है हमें उन्हें अंग्रेजी में बताना पड़ता है तब हम समझ पाते हैं उसमें बहुत कुछ गलतियां हमारी भी है कि हम अपने बच्चों को हिंदी के प्रति जागरूक नहीं कर पा रहे हैं जो कि आज सरस्वती शिशु मंदिर के द्वारा निरंतर यह कार्य किया जा रहा है ऐसा नहीं है कि सरस्वती शिशु मंदिर में केवल हिंदी के ही पाठ्यक्रम है इसके अलावा भी वहां कंप्यूटर अंग्रेजी सभी की शिक्षा दी जा रही है परंतु हिंदी के महत्व को हिंदी के संस्कार को परिवेश को अगर कहीं सिखाया जा रहा है तो वह है सरस्वती शिशु मंदिर। मैं खुद वहां का छात्रा रहा वहां हूं करके यह बात में गर्व से कहता हूं कि सरस्वती शिशु मंदिर में हिंदी और संस्कृत की प्राथमिकता के साथ ही साथ अन्य सभी विषयों को जोकि आपको आगे पढ़ने में सहायक है उनको भी पढ़ाया जाता है।

सरस्वती शिशु मंदिर और हिंदी

आज हिंदी भाषा को विद्या भारती जो कि अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान है जिसमें संबद्ध छत्तीसगढ़ प्रांत में ११११ सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय शिक्षा के कार्य में कार्यरत है और अपने भारतीय दायित्वों का निर्वहन करते हुए इस संस्थान द्वारा बालक बालिकाओं को हिंदी संस्कृत के साथ ही साथ घर में बाहर में कैसे मर्यादित होकर संस्कारी होकर जीवन व्यतीत करना चाहिए उसकी भी शिक्षा देती है। अभी विद्या भारती द्वारा रायगढ़ जिले में हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए घर-घर अभियान चलाया गया। जिसमें की इस विद्यालय के भूतपूर्व छात्र छात्राएं आचार्य और इस संस्थान से जुड़े लोगों द्वारा इस पुनीत कार्य में हिस्सा लिया और घर घर जाकर हिंदी भाषा के महत्व को समझाया गया।

हिंदी के साथ ही साथ जो जरूरी विषय पाठ्यक्रम है जिससे कि आपको प्रतिस्पर्धा में भाग लेने में सहायक हो वैसे विषयों को भी प्राथमिकता से पढ़ना चाहिए पर हमें अपनी मातृभाषा के प्रति भी उतनी ही श्रद्धा और भावनात्मक लगाव होना चाहिए कि वह हमारे आने वाले भविष्य को संस्कारों से उज्जवल रख सके।

आज विश्व के अनेक ऐसे देश हैं जो कि अपने सारे कार्य अपनी मातृभाषा में ही करते हैं वे अन्य किसी भी भाषा को महत्व नहीं देते केवल जितनी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वार्ता के लिए या अन्य कार्य के लिए आवश्यक हो उतनी ही उसकी जानकारी रखते हैं। वह अपने पढ़ाई लिखाई से लेकर, उच्च शिक्षा, नौकरी, रिसर्च उनके यहां के लेख सभी उनकी मातृभाषा में लिखा हुआ है।

७०% आबादी गांव में मगर..??

हमारी सरकारों को भी जरूरी है कि इस दिशा में आवश्यक कदम उठाकर मातृभाषा को उचित सम्मान देते हुए केवल हिंदी दिवस मनाने की बजाए उसे कैसे विकसित किया जाए! कैसे हमारे सारे कार्य हिंदी में संपादित किए जाएं.. सरकारी ऑफिस में हिंदी भाषा को प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता है। पढ़ाई चाहे इंजीनियरिंग डॉक्टर वकील यह अन्य सैकड़ों परीक्षाएं जो कि अधिकतर अंग्रेजी भाषा में हो रही हैं उनके लिए भी एक आवश्यक मापदंड नीति तय होना चाहिए कि अब हमारी इन सभी की शिक्षाएं हिंदी में भी होंगी तो अपने आप हिंदी भाषा को प्राथमिकता मिलनी शुरू हो जाएगी। अभी २ दिन पहले ही अखबार के द्वारा जानकारी प्राप्त हुई की सुप्रीम कोर्ट के फैसले भी हिंदी में एवं क्षेत्रीय भाषाओं में भी आएंगे। इससे यह देखने और सुनने को मिलेगा कि जिस व्यक्ति का केस है उसको फैसला पढ़ना और समझना आ जाएगा क्योंकि आज भी हमारी ७०% आबादी गांव में बसती है यहां उचित व्यवस्था ना होने के कारण हर कोई अंग्रेजी नहीं पढ़ सकता और उसे अपने अंग्रेजी के पत्राचार के लिए दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है।

-संजय बेरीवाल पल्लू

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